Friday, September 23, 2022

क्या कुछ सच में बदल रहा है

 क्या सच में कुछ बदल रहा है ? 


बात पहले की करे या आज की हालात कुछ खास नहीं बदले है
कल  वाक और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं थी इसलिए हमें घटनाएं कम सुनाई देती है या यूँ कहे सुनाई ही नहीं देती थी तो क्या पहले अपराध ही नहीं होते थे......? नहीं ऐसा नहीं है अपराध तब भी होते थे बस हमें संचार के साधनों के अभाव में सुनाई दिखाई नहीं देते थे। 
और आज..... आज तो हालात इतने बदतर हो गए है आज का आदमी माफ करना सिर्फ आदमी कहना पर्याप्त नहीं होगा  क्योंकि आज के समय में इंसान क्यों इतना गिरता जा रहा है इसका जवाब शायद उपर ईश्वर भी सुनना न चाहे क्योंकि कुछ अपराध ऐसे होते है जो सारी सीमाएं तोड़ देते है ...एक मामा जो अपनी 4 वर्ष की भांजी को रोज खिलाने आता था उसकी माँ का अपने भाई पर भरोसा होना लाजमी था उसे कहाँ पता था अब जमाना खून के रिश्तों पर भी भरोसे लायक नहीं है मामा ने अपनी 4 वर्ष की भांजी के साथ रेप किया और उसे अधमरी हालत में घर पे छोड़ कर भाग गया... माँ ने जैसे अपनी बेटी को खून से लथपथ देखा जरा अंदाजा लगा कर देखिये उस माँ पर क्या गुजरी होगी जब उसने ऐसी हालत में अपनी बच्ची को देखा, वो फ़ौरन दौड़ी अपनी बच्ची से पूछा मगर वो बच्ची क्या समझती की उसके साथ क्या हुआ है उसने बस मामा ने गलत काम किया है इतना ही बोला जरा उसकी उम्र पर तो गौर कीजिये.. माँ हालत देख सब समझ गई उसने फ़ौरन उसे लेकर पुलिस थाने मे FIR दर्ज कराई बच्ची का मेडिकल हुआ जिसमें रेप की पुष्टि हुई उस बच्ची का वेजाईना पूरी तरह से घायल आस पास की चोट, खरोंच छिला हुआ, रेप वो भी अत्यधिक बल द्वारा साबित हो गया
वो पीड़ित बच्ची 3 माह तक अस्पताल में जिंदगी से लड़ती रही है मगर न्यायलय में defence ये की पीड़िता का 164 बयान नहीं हुआ है इसलिए अभियुक्त को संदेह का लाभ दिया जाए मगर फिर भी इंसाफ हुआ अभियुक्त मामा को घटना के दो बर्ष बाद U/S 5/6 Posco act 2012 में 20 वर्ष की सजा हुई दो साल लगे पूरे साबित यानी crystal and clear मामले में भी दो वर्ष लग गए
जिसकी अपील उच्च न्यायलय में pedning है। 
 
अब कुछ प्रश्न उठते है 
-क्या उस पीड़िता की हालत के लिए 20 वर्ष की सजा काफी है? 
-क्या इस पीड़िता को इस दकियानुसी समाज में वो इज्जत मिलेगी
-क्या पीड़िता इस भयानक हादसे के डर से बाहर आ पायेगी
-क्या किसी को अपने ही खून के रिश्तों पर भरोसा करना चाहिए 
- क्या पीड़िता का बचपन अब सामान्य बच्चो जैसा रह पायेगा
-क्या स्त्री 4 साल की हो या 60 साल की किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं महसूस कर सकती 
क्या इस 20 साल की सजा सुन कर लोग अब ऐसा अपराध करने से डरेंगे???? 

तो क्या सच में कुछ बदल रहा है या सिर्फ कानून में धाराएँ ही? ? 

Advocate Suparna Mishra

Tuesday, July 4, 2017

हंसना  था और सबको हँसाना था 
बचपन का ऐसा  एक जमाना था 
कंधो पे बैग टांगे स्कूल तक ही तो जाना था 
माँ की लोरिया तो पिता को  खिलौने हर रोज लाना था
चाहत थी चाँद को पाने की पर दिल तो चॉक्लेट का दीवाना था 

बारिश में कागज की नांव बनाना क्या मौसम वो सुहाना था 
खेल वो चोर -सिपाही का उसका तो अपना ही जमाना था 
हार बात पे जिद और रोना बस यही हथियार पुराना था 
हंसना था और सबको हँसाना था 
बचपन का ऐसा एक जमाना था 
खबर न होती दिन की न शाम का कोई  ठिकाना था  
बर्फ के गोले, मिट्टी के बर्तन इन्ही सब में वक़्त बिताना था 
अपनी ही दुनिआ में  खुश रहने का  यही  तराना  था 


भाई की चुगली फिर उसकी पिटाई भी  करवाना था 
दादी की परियो की  कहानियां फिर मस्ती में उनका  चश्मा  छिपाना था 
स्कूल की पढाई से थक कर  छुट्टी में नानी के घर भी तो जाना था
 जीवन मानो खुशियों  का खजाना था 
 ऐसा ही एक बचपन का मासूमियत का
 शरारतो का ,मस्ती का जमाना था 

गुजर गया क्यों बचपन का वो  जमाना  है 
अब तो ना रातो को नींद है न दिन का ठिकाना है 

दिल में बस कुछ कर गुजरने की चाहत
    और मंजिल को बस पाना है

बचपन की यादें  छूट गई ,अब तो हर रोज काम पे जाना है 
      जीवन युहीं संघर्षो में बिताना है 
क्यूंकि आज हर कोई बस..."सरकारी नौकरी का ही दीवाना" है !
                                                         -Suparna Mishra 










Sunday, April 12, 2015

woman labour

                          महिला श्रम के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान 


यह सच है की महिलाएं प्राकृतिकता पुरुषो की भाति सशक्त नहीं होती है , लकिन इसका ये अर्थ नहीं की महिलाओ के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता है क्यूंकि आज हर महिला पुरुषो की भाँति कंधे से कन्धा मिला कर चलती है !
           परन्तु महिलाये  शारीरिक रूप से कमजोर होती है पुरषो की तुलना में यही कारण है की वो कठोर व् जोखिम भरे श्रम यूख कार्यो में नियोजन के बारे में श्रम विधियों में विशेष  वस्थाये की गयी है !

ये सुविधाये उन महिलाओं के लिए जिन्हे अपना पेट पलने के लिए ऐसी जगह काम करना पड़ता है जहा उन्हें जान का जोखिम रहता है फिर भी उनके पास और कोई रास्ता नहीं होता उन सब महिलाओं के लिए 

                                                       कारखाना अधिनियम 1948 
महिलाओ के लिए विशेष प्रावधान करता है 
*  दुर्घंटना होने की संभावना वाले यंत्रो पर कार्य करने के लिए महिलाओं को नियुक्त नहीं किआ जायेगा 
*  रुई धुनकियो पर भी महिलाओ को नियोजित नहीं किआ जायेगा 
* सूर्यास्त से सूर्योदय  महिलाओ को नियोजित नहीं किआ जायेगा 
*महिलाओ के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था की  जाये 
* जिन महिलाओ के लिए ६ वर्ष से काम आयु के बच्चे हो उनके बच्चो के लिए अलग से व्यवस्था की जाएगी 
* महिलाओं के लिए कार्य दिवसों के बीच 11 घंटो का अंतराल रखा जाना आवशयक है 

                                     कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम    1948 

 * यदि कोई महिला कर्मचारी  गर्भवती है या किसी बीमारी से पीड़ित है अथवा उसका गर्भपात हो गया हो तो            ऐसी महिला कर्मचारी कलिक संदाय पाने की अधिकारी होगी 
*  ऐसी महिलाओं को बीमारी प्रसुविधा का लाभ दिए जायेगा 
*  बीमार महिला कर्मचारियों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जाएगी चाहे उसका             आचरण कितना भी गंभीर आक्षेपों वाला ही क्यों न हो !

             
          इन्ही प्रकार के विशेष प्रावधानों का लाभ पा  कर ही आज महिलाये कई जोखिम भरे कार्यो में नियोजित होने लगी है आज महिलाये हर क्षेत्र में सफल हो रही है आज हर महिला शिक्षक (teacher ),चिकिस्तक(Doctor) ,अधिवक्ता (Advocate ),पायलेट (Piolet ),पुलिस (Police ),बनाना चाहती है और बन भी रही है ! आज की महिला किसी से कम  नहीं है वो हर क्षेत्र में सफल है !  

आज की आधुनिकता भरे समाज में महिलाओ को अपने अधिकार पता होते है फिर भी अभी भी कई ऐसी महिलाये है जिन्हे अपने इन अधिकारों इन कानूनी व्यवस्थाओ का ज्ञान नहीं है तो आप इसे उन महिलाओ तक पहुचाये ताकि कोई भी महिला जानकारी के आभाव में अपने अधिकारो से वंचित न रहे!








Friday, April 3, 2015

पर्यांवरण संरक्षण

                             भारतीय संविधान  के पर्यांवरण संरक्षण से सम्बंधित प्रावधान

प्रत्येक  व्यक्ति को स्वस्थ पर्यावरण के उपयोग का पूरा अधिकार होता है !और ये मुमकिन है  अपने आस-पास स्वछता रखेंगे ,और दुसरो की भी इसके लिए जागरूक रखेंगे। …… और ऐसा न करने वालो को दंड दिया जायेगा जिससे पर्यावरण स्वस्थ रहे क्युकी हमारा पर्यावरण ही हमारे जीवन को प्रभावित करता है   

भारत  , जो  विश्व का एक ऐसा पहला संविधान है जिसमे पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष उपबंध किये गए है 
क्योँकि पर्यावरण का संरक्षण करना राज्य का ही नहीं बल्कि  नागरिको का भी दायित्व है ! आईये जाने क्या क्या। ……
       
भारतीय संविधान  के अंतर्गत इसके सम्बन्ध में। ……

                                         1. नीति निदेशक तत्त्व के रूप में -
संविधान  के भाग 4  में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में इसका उल्लेख किआ गया है' , 
अनुछेद 48 -A -  जो की इस  बारे में है की राज्य देश के पर्यावरण की सुरक्षा और उसमे सुधार  करने का और वन तथा वन्य जीवो की  रक्षा का प्रयास करेगा 

                                               2. मूल कर्तव्य के रूप में 
अनुछेद -51 (A )- भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है की वन ,झील नदी ,और वन्य जीव की हमेशा रक्षा करे ! और उनके प्रति हमेशा दया भाव रखे !

                               
                                           3. मूल  अधिकार के रूप में
अन्छेद -21 - के अंतर्गत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में स्वस्थ पर्यावरण का भी अधिकार शामिल 

"एक स्वच्छ  वातावरण में ही स्वस्थ  समाज निवास कर सकता है "जो प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य और दायित्व भी हैं 

Monday, March 30, 2015

भरण पोषण ( MAINTENANCE)

                                                       ** भरण पोषण **

भारतीय समाज में बहुत समय से ही ये ये धारणा रही है की हर व्यक्ति अपने बूढ़े  माँ -बाप ,पत्नी ,व अपनी संतान जो अवयस्क हो अवयस्क से अर्थ है जिन्होंने 18 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ली हो,ऐसी संतानो का भरण पोषण  सुनिश्चित  करे !
ये केवल हर व्यक्ति का कर्तव्य ही नहीं उसका सामाजिक दायित्व भी होता है !

जरा सोचिये अगर हमारे कानून में ऐसी कोई सुविधा न होती तो इस समाज में जहा स्वार्थ में रमा हर एक इंसान स्वयं के लिए सोचता है क्या वो अपने माँ-बाप का सहारा बनता और मान लीजिये कई ऐसे भी है जो आज भी अपने माँ -बाप का सहारा बनते है। .......लेकिन जहा ऐसा नहीं होता तो वहा  क्या होता। ।कहा  जाते वो बूढ़े ,असहाय ,माँ-बाप कौन बनता उनका सहारा ,कौन देता उन्हें दो वक़्त का भोजन। .......


एक पत्नी जो शादी के बाद पति के घर को ही अपना संसार बना लेती है अपना हर सुख हर दुःख पति के साथ ही निभाती है ,कठिनाई में उसका कदम कदम पे साथ निभाती है।   क्या होता  जब वही पति उसे उसके खर्चे देने से ही इंकार कर देता कहा जाती वो पत्नी किस्से मदद मांगने 


वो संताने जो अभी तक जीवन की सच्चाई से रूबरू ही नहीं हुए हो कैसे पालते  अपना पेट कैसे करते   अपनी शिक्षा पूरी, कैसे करते अपनी इक्छाये पूरी'.... 


दंड प्रक्रिया संहिता

धारा 125 से 128 भरण -पोषण के समबन्ध में है ,जिसका  उद्देश्य  दंड देना कभी नहीं रहा  बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को अपने परिवार के प्रति  अपने दायित्त्वों  का बोध कराता  है !

125 -संतान ,और माता पिता के भरण पोषण के लिए आदेश

(पर्याप्त साधनो वाला कोई भी व्यक्ति )
1 .  अपनी पत्नी को जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
2.  अपनी धर्मज या अधर्मज  अवयस्क संतान का
3. अपनी धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान का यदि ऐसी संताने जो शारीरिक या मानसिक छति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
4. माता -पिता का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो'

**   अब प्रश्न ये है की भरण पोषण का आवेदन कौन  कर सकेगा 

- पत्नी ( जिसमे वो महिला शामिल है जिसे तलाक दे दिया गया है ,या जिसने तलाक ले लिया है और जिसने      दूसरी शादी न की हो
- अवयस्क संतान (पुत्र व् पुत्री ) चाहे विवाहित हो या अविवाहित
- वयस्क संतान (धर्मज या अधर्मज लेकिन इसमें विवाहित पुत्री शामिल नहीं है )
- माता पिता
आवेदक को यह साबित करना होगा की वो अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है

भरण पोषण का वाद ------- (प्रथम श्रेणी के न्ययिक मजिस्ट्रेट को किआ जायेगा)

125(4)भरण पोषण देने से कब इंकार किया जा सकता है 
यदि पत्नी बिना पर्याप्त कारणों के अलग रह रही हो
यदि पत्नी Adultery में रह रही हो

125 (3 )- कोर्ट के आदेश का पालन  के अंतर्गत-    यदि कोई व्यक्ति  बिना पर्याप्त कारणों के आदेश का पालन करने में असफल रहता है तो  उसके खिलाफ वारंट जारी किआ जा सकता है वारंट के पशात् हर माह के न चुकाए गए भरण पोषण की राशि के लिए कारावास का दंड भी दिए जा सकता है !

126  -भरण पोषण की प्रक्रिया 
 वाद लेन का स्थान -
* कारवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है ;
* जहा वह है ,
* जहा वह या उसकी पत्नी निवास करती है
* जहा उसने अंतिम बार अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज संतान  साथ निवास किआ था

127 - भरण पोषण की राशि  में परिवर्तन
1. पुनर्विवाह
2. पत्नी को पहले ही राशि भुक्तान  की जा चुकी हो
3. जब स्वेक्षा से पत्नी ने भरण पोषण का त्याग किआ हो

** मुस्लिम महिला का भरण पोषण का अधिकार

*निजी विधि द्वारा
*दंड प्रक्रिया संहिता
*मुस्लिम महिला अधिनियम 1986

128 - भरण पोषण के भत्ते में प्रवर्तन

1.  पति पत्नी की सहमति द्वारा
२. बिना  पर्याप्त कारणों के अलगाव
3. पत्नी का जरता में रहना जो मुस्लिम महिलओं के सम्बन्ध में है

            अपने हक़ को जानो और उसे पाओ न मिले जो आसानी से तो कानून का दरवाजा खटखटाओ 
इन हक़ का गलत फायदा न उठाये क्युकी कानून आपकी मदद के लिए बना है यदि आप उसे सही के बजाये गलत तरीके से हासिल करना चाहेंगे तो आप जैसो की वजह से ही जरुरत मंद अपना हक़ कैसे पाएंगे। .... 



















Sunday, March 15, 2015

"बच्चे मन के सच्चे




                                             बाल मजदूरी 


   "बाल मजदूरी "    ये एक ऐसा अभिशाप है जो हमारे समाज को गन्दा कर रहा है  ,हमारे समाज में दो तरह के लोग होते है एक तो वे जिनके बच्चे बड़ी बड़ी गाडियो में घूमते है ,बड़े बड़े स्कूलों  में पढ़ते है ,अच्छे अच्छे कपडे पहनते है ......और दूसरी तरफ वे बच्चे जिन्हें एक समय का भोजन बी मुश्किलों से मिलता है उन्हें गाडियो का तो दूर बल्कि सोने के लिए फुठपाथ  ही नसीब होता है,वे कपडे भी दुसरो के उतरन पहेंते है....     
और शिक्षा......?????        उसका क्या?

उनकी शिक्षा  की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं...  ,उनका भविष्य बनाने वाला कोई नहीं

अगर हम सब मिलकर कोशिश करे और बच्चो के भविष्य के साथ होने वाले खिलवाड़ को रोकने में मदद करे तो  शायद हमारी ही वहज से किसी एक बच्चे का भविष्य सुधर जाये और इसी तरह एक से दो ......

हम कोशिश कर सकते है........

भारतीय संविधान  

जिसमे बाल मजदूरी के लिए विशेष कानून बना है जिसकी जानकारी हमे आप सबको होनी चाहिए जिससे हम अपने आस पास बाल मजुदुरी रोक सके !

अनुछेद -24 -  कारखानों, खानों और अन्य खतरनाक नौकरियों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संसद ने बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 अधिनियमित किया है, जिसमें उन्मूलन के लिए नियम प्रदान करने और बाल श्रमिक को रोजगार देने पर दंड के तथा पूर्व बाल श्रमिकों के पुनर्वास के लिए भी प्रावधान दिए गए हैं।

हमारा प्रयास ये है की हम आप सबको अपने विचारो में इस कानूनी व्यवस्था का ज्ञान कराये जिससे आप सब खुद में जागरूक रहे और अपने आस पास इस अभिशाप से हमारे समाज को सुधरने में अपनी कोशिश करे और हर बच्चो को शिक्षा ,रहन सहन ,और उन्हें बाल मजदूरी के अभिशाप से बचाए   ..

ताकि हर एक बच्चा अपना बचपन जी सके और शिक्षा जो हर बच्चो के लिए उनका मौलिक अधिकार है वो मिल सके ! बाल मजदूरी को जड़ से उखाड़ फेके .

 "क्योंकि  जब छोटे कंधो पे होगा इतना भार तो....कैसे होगा समाज में सुधार"