** भरण पोषण **
भारतीय समाज में बहुत समय से ही ये ये धारणा रही है की हर व्यक्ति अपने बूढ़े माँ -बाप ,पत्नी ,व अपनी संतान जो अवयस्क हो अवयस्क से अर्थ है जिन्होंने 18 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ली हो,ऐसी संतानो का भरण पोषण सुनिश्चित करे !
ये केवल हर व्यक्ति का कर्तव्य ही नहीं उसका सामाजिक दायित्व भी होता है !
जरा सोचिये अगर हमारे कानून में ऐसी कोई सुविधा न होती तो इस समाज में जहा स्वार्थ में रमा हर एक इंसान स्वयं के लिए सोचता है क्या वो अपने माँ-बाप का सहारा बनता और मान लीजिये कई ऐसे भी है जो आज भी अपने माँ -बाप का सहारा बनते है। .......लेकिन जहा ऐसा नहीं होता तो वहा क्या होता। ।कहा जाते वो बूढ़े ,असहाय ,माँ-बाप कौन बनता उनका सहारा ,कौन देता उन्हें दो वक़्त का भोजन। .......
एक पत्नी जो शादी के बाद पति के घर को ही अपना संसार बना लेती है अपना हर सुख हर दुःख पति के साथ ही निभाती है ,कठिनाई में उसका कदम कदम पे साथ निभाती है। क्या होता जब वही पति उसे उसके खर्चे देने से ही इंकार कर देता कहा जाती वो पत्नी किस्से मदद मांगने
वो संताने जो अभी तक जीवन की सच्चाई से रूबरू ही नहीं हुए हो कैसे पालते अपना पेट कैसे करते अपनी शिक्षा पूरी, कैसे करते अपनी इक्छाये पूरी'....
दंड प्रक्रिया संहिता
धारा 125 से 128 भरण -पोषण के समबन्ध में है ,जिसका उद्देश्य दंड देना कभी नहीं रहा बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को अपने परिवार के प्रति अपने दायित्त्वों का बोध कराता है !
125 -संतान ,और माता पिता के भरण पोषण के लिए आदेश
(पर्याप्त साधनो वाला कोई भी व्यक्ति )
1 . अपनी पत्नी को जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
2. अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का
3. अपनी धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान का यदि ऐसी संताने जो शारीरिक या मानसिक छति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
4. माता -पिता का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो'
** अब प्रश्न ये है की भरण पोषण का आवेदन कौन कर सकेगा
- पत्नी ( जिसमे वो महिला शामिल है जिसे तलाक दे दिया गया है ,या जिसने तलाक ले लिया है और जिसने दूसरी शादी न की हो
- अवयस्क संतान (पुत्र व् पुत्री ) चाहे विवाहित हो या अविवाहित
- वयस्क संतान (धर्मज या अधर्मज लेकिन इसमें विवाहित पुत्री शामिल नहीं है )
- माता पिता
आवेदक को यह साबित करना होगा की वो अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है
- भरण पोषण का वाद ------- (प्रथम श्रेणी के न्ययिक मजिस्ट्रेट को किआ जायेगा)
भारतीय समाज में बहुत समय से ही ये ये धारणा रही है की हर व्यक्ति अपने बूढ़े माँ -बाप ,पत्नी ,व अपनी संतान जो अवयस्क हो अवयस्क से अर्थ है जिन्होंने 18 वर्ष की आयु प्राप्त न कर ली हो,ऐसी संतानो का भरण पोषण सुनिश्चित करे !
ये केवल हर व्यक्ति का कर्तव्य ही नहीं उसका सामाजिक दायित्व भी होता है !
जरा सोचिये अगर हमारे कानून में ऐसी कोई सुविधा न होती तो इस समाज में जहा स्वार्थ में रमा हर एक इंसान स्वयं के लिए सोचता है क्या वो अपने माँ-बाप का सहारा बनता और मान लीजिये कई ऐसे भी है जो आज भी अपने माँ -बाप का सहारा बनते है। .......लेकिन जहा ऐसा नहीं होता तो वहा क्या होता। ।कहा जाते वो बूढ़े ,असहाय ,माँ-बाप कौन बनता उनका सहारा ,कौन देता उन्हें दो वक़्त का भोजन। .......
एक पत्नी जो शादी के बाद पति के घर को ही अपना संसार बना लेती है अपना हर सुख हर दुःख पति के साथ ही निभाती है ,कठिनाई में उसका कदम कदम पे साथ निभाती है। क्या होता जब वही पति उसे उसके खर्चे देने से ही इंकार कर देता कहा जाती वो पत्नी किस्से मदद मांगने
वो संताने जो अभी तक जीवन की सच्चाई से रूबरू ही नहीं हुए हो कैसे पालते अपना पेट कैसे करते अपनी शिक्षा पूरी, कैसे करते अपनी इक्छाये पूरी'....
दंड प्रक्रिया संहिता
धारा 125 से 128 भरण -पोषण के समबन्ध में है ,जिसका उद्देश्य दंड देना कभी नहीं रहा बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को अपने परिवार के प्रति अपने दायित्त्वों का बोध कराता है !
125 -संतान ,और माता पिता के भरण पोषण के लिए आदेश
(पर्याप्त साधनो वाला कोई भी व्यक्ति )
1 . अपनी पत्नी को जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
2. अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का
3. अपनी धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान का यदि ऐसी संताने जो शारीरिक या मानसिक छति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो
4. माता -पिता का जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो'
** अब प्रश्न ये है की भरण पोषण का आवेदन कौन कर सकेगा
- पत्नी ( जिसमे वो महिला शामिल है जिसे तलाक दे दिया गया है ,या जिसने तलाक ले लिया है और जिसने दूसरी शादी न की हो
- अवयस्क संतान (पुत्र व् पुत्री ) चाहे विवाहित हो या अविवाहित
- वयस्क संतान (धर्मज या अधर्मज लेकिन इसमें विवाहित पुत्री शामिल नहीं है )
- माता पिता
आवेदक को यह साबित करना होगा की वो अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है
- भरण पोषण का वाद ------- (प्रथम श्रेणी के न्ययिक मजिस्ट्रेट को किआ जायेगा)
125(4)भरण पोषण देने से कब इंकार किया जा सकता है
यदि पत्नी बिना पर्याप्त कारणों के अलग रह रही हो
यदि पत्नी Adultery में रह रही हो
125 (3 )- कोर्ट के आदेश का पालन के अंतर्गत- यदि कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त कारणों के आदेश का पालन करने में असफल रहता है तो उसके खिलाफ वारंट जारी किआ जा सकता है वारंट के पशात् हर माह के न चुकाए गए भरण पोषण की राशि के लिए कारावास का दंड भी दिए जा सकता है !
126 -भरण पोषण की प्रक्रिया
* वाद लेन का स्थान -
* कारवाही किसी ऐसे जिले में की जा सकती है ;
* जहा वह है ,
* जहा वह या उसकी पत्नी निवास करती है
* जहा उसने अंतिम बार अपनी पत्नी के साथ या अधर्मज संतान साथ निवास किआ था
127 - भरण पोषण की राशि में परिवर्तन
1. पुनर्विवाह
2. पत्नी को पहले ही राशि भुक्तान की जा चुकी हो
3. जब स्वेक्षा से पत्नी ने भरण पोषण का त्याग किआ हो
** मुस्लिम महिला का भरण पोषण का अधिकार
*निजी विधि द्वारा
*दंड प्रक्रिया संहिता
*मुस्लिम महिला अधिनियम 1986
128 - भरण पोषण के भत्ते में प्रवर्तन
1. पति पत्नी की सहमति द्वारा
२. बिना पर्याप्त कारणों के अलगाव
3. पत्नी का जरता में रहना जो मुस्लिम महिलओं के सम्बन्ध में है
अपने हक़ को जानो और उसे पाओ न मिले जो आसानी से तो कानून का दरवाजा खटखटाओ
इन हक़ का गलत फायदा न उठाये क्युकी कानून आपकी मदद के लिए बना है यदि आप उसे सही के बजाये गलत तरीके से हासिल करना चाहेंगे तो आप जैसो की वजह से ही जरुरत मंद अपना हक़ कैसे पाएंगे। ....